
“रेत… जो पहले सिर्फ ईंट-गारे के काम आती थी, अब सियासत का मसाला बन चुकी है।
जैतहरी की खदान में रेत कम और विवाद ज़्यादा बह रहे हैं।
पेश है – ‘कक्का की चौपाल – रेत का रण’
जहां घसीटा और चौरंगी लाल जैसे पात्रों की आंखों से झांकती है एक सच्ची तस्वीर –
सिस्टम की, सियासत की और सत्ता की।”
चौपाल की शुरुआत
चौपाल का माहौल – चिड़ियों की चहचहाहट, हुक्के की गुड़गुड़, दूर से ट्रैक्टर की घरघराहट
कक्का (गंभीर आवाज़)
“अरे ओ भोला, ज़रा वो अखबार देना। आज फिर रेत कंपनी का झगड़ा छपा है।
लगता है अब खदान से रेत नहीं, नेतागिरी निकलेंगी!”
चौरंगी लाल
“लाइव हूं कक्का! जैतहरी की रेत अब न्यूज़ बन चुकी है!
31 नकाबपोशों ने एसोसिएट कॉमर्स रेत कंपनी ऑफिस में घुसकर तांडव मचाया।
लाठी, पाइप और गाली की बारिश… दो कर्मचारी को नदी तक घसीटा और पीटा!”
कक्का (हुक्के की गुड़गुड़ के बीच)
“वाह रे जैतहरी! रेत पर टीपी की चपत, और राजनीति का खेल!”
घसीटा की आपबीती रेत कंपनी जैतहरी का कर्मचारी जो ठहरा
घसीटा
“कक्का, उस दिन मैं कैशियर था… ऑफिस में बैठे थे, तभी अचानक 31 नकाबपोश घुस आए।
गेट से अंदर आते ही बोले – ‘तुम्हारे लोगों ने हमारे आदमी को पीटा है!’
गालियां दीं, लाठी चलाई, और फिर CCTV सब रिकॉर्ड करता रहा।” उस दिन की पूरी कमाई लूट ले गए
भोला (हैरानी से)
“फिर पुलिस आई?”
घसीटा
“पुलिस तब आई जब वीडियो वायरल हुआ।
पहले तो कहते रहे – ‘जांच चल रही है…’ अब FIR हुई है।”
नेता जी का ज्ञापन
नेता जी (तेज आवाज़ में)
“SP साहब, ये हमला तीरथ राठौर जी पर था, पूरे समाज पर था!
रेत कंपनी के कर्मचारियों पर धारा 307 लगाओ – जानलेवा हमला है ये!”
चौरंगी लाल
“और जैतहरी में राठौर समाज के वोट हैं साहब… ज्ञापन भी वोट गिनकर लिखा जाता है।”
खनिज विभाग का मौन
खनिज कार्यालय की सीढ़ियां, बंद दरवाजा, मकड़ी का जाला हिलने की आवाज़ आती है
“जहां खनिज विभाग को सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी होनी चाहिए, वहां सिर्फ सन्नाटा हैं।
कंपनी करोड़ों का टैक्स देती है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर खामोशी।”
गोलू
“कक्का, कंपनी तो राजस्व दे रही है, लेकिन चोरी रोकने पर उल्टा मार खा रही है!”
कक्का (उदास स्वर में)
“यहां रेत की चोरी नहीं, भरोसे की डकैती हो रही है बेटा।
नेता वोट देख रहा है, पुलिस वीडियो, और खनिज विभाग हिस्सा!”
चौपाल का फ़ैसला कक्का की आवाज़ गूंजती है
कक्का
“घसीटा लड़ा – नौकरी के लिए
चौरंगी लाल लड़ा – सच के लिए
पुलिस फंसी – दबाव में
राजनीति खेल गई – चाल में
और नेता?
उसे चाहिए रेत भी, पैसा भी, और चैन भी –
लेकिन चैन आजकल सिर्फ ‘फॉरवर्ड’ होता है…सोशल साइट पर
सिस्टम से नहीं, स्क्रीन से मिलता है!”
यह चौपाल” खत्म नहीं हुई
बल्कि हर खदान में, हर गांव में रोज़ दोहराई जा रही है।
कभी रेत में…
कभी राजनीति में…
और कभी खून में।”
कक्का – गांव का अनुभवी बुजुर्ग, व्यंग्य में गूढ़ बातें कहता है
पात्र परिचय
घसीटा – रेत कंपनी का कैशियर, वास्तविकता से जूझता आम कर्मचारी है
चौरंगी लाल – मोबाइल पत्रकार, जोश और तंज से भरपूर
भोला, गोलू – ग्रामीण युवा, सवाल करने वाला



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