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परमाणु शक्ति या मानवता पर संकट? पाकिस्तान के न्यूक्लियर जखीरे पर उठते सवाल

परमाणु शक्ति या मानवता पर संकट? पाकिस्तान के न्यूक्लियर जखीरे पर उठते सवाल




21वीं सदी विज्ञान और तकनीक की ऊँचाइयों की सदी है, परंतु जब वही तकनीक मानवता के अस्तित्व को चुनौती देने लगे, तो उसका मूल्यांकन आवश्यक हो जाता है। आज जब दुनिया पर्यावरण, विकास और वैश्विक शांति की बात कर रही है, कुछ देशों के परमाणु कार्यक्रम ऐसे हैं जो खुद उस शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुके हैं। इस संदर्भ में पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर आता है — एक ऐसा देश जहां आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकी गतिविधियों की पृष्ठभूमि में परमाणु हथियारों का ढांचा खड़ा है।


परमाणु शक्ति रक्षा या भय का हथियार?

पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु परीक्षण कर खुद को “परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र” घोषित किया। इसका तर्क था “भारत के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ सामरिक संतुलन बनाए रखना।” लेकिन इसके बाद से पाकिस्तान ने न तो ‘No First Use’ नीति अपनाई और न ही विश्वसनीय नियंत्रण और पारदर्शिता की दिशा में ठोस प्रयास किए।

आज पाकिस्तान के पास अनुमानत 100 से 170 परमाणु हथियार हैं। ये हथियार छोटे युद्धक मिशनों (Tactical Nukes) से लेकर बड़े पैमाने के विनाश तक में सक्षम हैं। हालांकि, इनके पीछे सैन्य रणनीति जितनी है, उससे कहीं अधिक चिंता इनके गलत हाथों में जाने की संभावना को लेकर है।

खतरे के तीन चेहरे अस्थिरता, आतंक और तकनीकी कमजोरी

राजनीतिक और सैन्य अस्थिरता

पाकिस्तान में लोकतंत्र, सेना और न्यायपालिका के बीच निरंतर संघर्ष रहता है। सत्ता का कोई स्थायी केंद्र नहीं है, जिससे न्यूक्लियर सुरक्षा ढांचे में दरारें पैदा होती हैं।

आतंकी घुसपैठ का खतरा

विश्व के कई खुफिया संगठनों ने यह चिंता जताई है कि पाकिस्तान के न्यूक्लियर बेस आतंकियों की “Soft Target List” में शामिल हो सकते हैं। ऐसे में यह कल्पना भयावह है कि अगर किसी दिन कट्टरपंथी किसी परमाणु हथियार को नियंत्रित कर लें।

तकनीकी और साइबर खतरे

आज जब साइबर सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है, तब पाकिस्तान जैसे देश में कमजोर आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर परमाणु हथियारों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। एक गलत आदेश, तकनीकी खराबी या साइबर हैकिंग से विनाश की चिंगारी कभी भी भड़क सकती है।


मानवता पर असर कल्पना नहीं, चेतावनी

यदि पाकिस्तान का  कोई एक न्यूक्लियर बम किसी भी शहर पर गिराया जाए, तो

1.5 लाख से अधिक लोग तत्काल मृत्यु का शिकार हो सकते हैं।

रेडिएशन का असर 30–40 वर्षों तक अगली पीढ़ियों पर रहेगा।

आर्थिक, सामाजिक और जैविक तंत्र ध्वस्त हो जाएगा।


और यदि भारत भी जवाबी हमला करता है, तो पूरा दक्षिण एशिया रेडिएशन से झुलस सकता है, जिससे 5–10 करोड़ तक जानें जा सकती हैं और वैश्विक जलवायु पर भी संकट आ सकता है। वैज्ञानिकों ने इसे “न्यूक्लियर विंटर” नाम दिया है — जहां सूरज की रोशनी महीनों तक पृथ्वी तक नहीं पहुंचेगी।

विश्व समुदाय की भूमिका चुप रहना अब विकल्प नहीं

संयुक्त राष्ट्र, IAEA (International Atomic Energy Agency) और वैश्विक शक्तियों को पाकिस्तान जैसे परमाणु-संपन्न परंतु अस्थिर राष्ट्रों की सुरक्षा संरचना, नीति और पारदर्शिता पर कठोर निगरानी रखनी होगी। दुनिया ने हिरोशिमा और नागासाकी के ज़ख्म देखे हैं, वह गलती दोहराई नहीं जानी चाहिए।

शक्ति का असली मापदंड

परमाणु शक्ति का उद्देश्य यदि दुनिया को रोशन करना नहीं है, और वह सिर्फ डर और विनाश का माध्यम बन जाए, तो यह विज्ञान नहीं, विनाश का यंत्र बन जाता है।

“जिम्मेदार विज्ञान ही सच्चा विज्ञान है, और जब विज्ञान का मार्ग मानवता से हट जाए, तब विनाश निश्चित है।”

लेखक: वैश्विक रक्षा और भू-राजनीति विश्लेषक
स्रोत: IAEA रिपोर्ट, SIPRI डेटा, न्यूक्लियर वॉच इंटरनेशनल

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