
“सर्जिकल फटकार – युद्ध की झूठी खबर पर बोलती बंद!”जब सीमाओं पर सन्नाटा बारूद की आवाज़ों से टूटा हो, जब वर्दियों में लिपटा हौसला एलओसी के पार छिपे खतरों को ललकार रहा हो, तब एक राष्ट्र के नागरिकों की जिम्मेदारी होती है कि वे ज़ुबान और ज़ेहन से संयम बरतें। लेकिन विडंबना ये रही कि भारत के कई प्रमुख न्यूज़ चैनल –– ने राष्ट्र की भावना को जिम्मेदारी से दिखाने की बजाय, युद्ध की लपटों को टीआरपी के तेल से और भड़काने की कोशिश की।
शाब्दिक तलवारबाज़ी ने न केवल पत्रकारिता की मर्यादाओं को रौंदा, बल्कि कूटनीति, सैन्य रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा की सीमाओं का भी उल्लंघन कर डाला।
सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को दरकिनार करते हुए सीधे मोर्चा संभालते हुए कुछ प्रमुख मीडिया हाउसों और उनके डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को कड़े शब्दों में फटकार लगाई है। यह चेतावनी किसी प्रेस विज्ञप्ति जैसी कोमल भाषा में नहीं, बल्कि “राष्ट्रीय सुरक्षा के दायित्व” के तेवर में दी गई।
लाइव ऑपरेशन, उड़ते विमानों के दृश्य, या युद्धस्थल की लोकेशन – यदि फिर दिखी, तो सीधे ‘सरकारी मेहमान’ बनाकर पूछताछ की जाएगी।
आज अचानक न्यूज़ स्टूडियोज़ की आग बुझ गई है।
‘शो मैन’ एंकरों की आवाज़ें कुछ धीमी हैं, शब्दों का चयन कुछ संयमित है, बैकग्राउंड म्यूज़िक की गड़गड़ाहट भी कहीं गुम है।
स्क्रीन पर अब ‘भारतीय सेना सीमा पर सतर्क’, ‘रक्षा मंत्रालय का बयान’, जैसी संतुलित लाइनें दिखाई दे रही हैं।
विश्वसनीयता पर संकट
इस घटना ने न्यूज़ मीडिया की जिम्मेदारी और विश्वसनीयता पर फिर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। जब देश युद्ध की ओर बढ़ रहा हो, तब टीवी स्टूडियो को युद्धभूमि नहीं बनाया जा सकता। यह दौर देशवासियों को सही सूचना देने का है, न कि राष्ट्रीय गर्व के नाम पर भ्रम फैलाने का।
मीडिया का काम युद्ध भड़काना नहीं, उसे समझाना है। यह पहली बार है जब गृह और रक्षा मंत्रालय ने एक साथ मिलकर न्यूज़ चैनलों को याद दिलाया ।
“देशभक्ति का मतलब ज़िम्मेदारी से बोलना है, ना कि शोर मचाकर स्क्रीन पर झंडा लहराना।”


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