
भारत सरकार की केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश के विद्युत क्षेत्र को नई ऊर्जा देने के उद्देश्य से ‘शक्ति’ (SHAKTI Scheme for Harnessing and Allocating Koyla Transparently in India) नीति के संशोधित संस्करण को मंजूरी दे दी है। यह नीति कोयला आवंटन की पारदर्शिता, प्रतिस्पर्धा और दक्षता में वृद्धि करेगी, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी और बिजली उत्पादन लागत में कमी आएगी। संशोधित नीति से निजी व सार्वजनिक दोनों विद्युत उत्पादकों को लाभ मिलेगा और सतत विकास की दिशा में यह एक निर्णायक कदम माना जा रहा है।
SHAKTI नीति
वर्ष 2017 में शुरू की गई SHAKTI नीति का उद्देश्य बिजली उत्पादकों को कोयला पारदर्शी तरीके से उपलब्ध कराना था। अब इसमें किए गए संशोधन नीति को मौजूदा चुनौतियों और मांगों के अनुरूप ढालने का कार्य करेंगे।
मुख्य संशोधन बिंदु
कोयला खपत आधारित बिजली संयंत्रों को दीर्घकालीन ईंधन आपूर्ति समझौते (FSA) के तहत ई-नीलामी प्रक्रिया द्वारा कोयला आवंटन किया जाएगा।
पहले से चालू परियोजनाओं के साथ-साथ नई परियोजनाओं को भी प्राथमिकता के आधार पर कोयला मिलेगा।
बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) को पूर्व निर्धारित शर्तों पर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु लंबी अवधि के बिजली खरीद समझौते (PPAs) पर बल।
उपयोग में नहीं आ रहे या आंशिक रूप से बंद पड़े बिजली संयंत्रों को पुनः संचालन में लाने हेतु कोयला आपूर्ति का प्रावधान।
कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की संचालन क्षमता में वृद्धि।
बिजली दरों में स्थिरता व उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली की उपलब्धता।
राज्य व निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहन।
राष्ट्रीय स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में संतुलन व स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य के साथ समन्वय।
बिजली क्षेत्र को कोयले की स्थायी और सुनिश्चित आपूर्ति।
डिस्कॉम्स को विश्वसनीय बिजली मिल सकेगी जिससे ब्लैकआउट की घटनाएं घटेंगी।
निवेशकों को पारदर्शी प्रक्रिया से आत्मविश्वास मिलेगा।
मौजूदा संयंत्रों की दक्षता बढ़ेगी, जिससे बिजली दरें कम हो सकती हैं। वैश्विक परिप्रेक्ष्य
संशोधित SHAKTI नीति वैश्विक मानकों के अनुरूप पारदर्शी कोयला आवंटन प्रणाली को मजबूत करती है, जिससे भारत ऊर्जा व्यापार में प्रतिस्पर्धी बनेगा और पेरिस जलवायु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति करने में सहायक होगा।
भारत सरकार द्वारा अनुमोदित संशोधित SHAKTI नीति, न केवल बिजली उत्पादन की निरंतरता और लागत में संतुलन सुनिश्चित करेगी, बल्कि कोयला क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। यह कदम भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सशक्त और निर्णायक छलांग दिलाएगा।
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