
(कैमरा ओपनिंग चौपाल का सीन। पीपल के पेड़ के नीचे खटिया लगी है। घसीटा माइक लेकर बैठा है, सिर पर गमछा, गले में माला, चौरंगी लाल बगल में हैं, हाथ में नोट्स और चश्मा बार-बार ठीक कर रहे हैं। गांव वाले मजे से बैठकर मूंगफली चबा रहे हैं। बैकग्राउंड में एक बच्चा गुब्बारा बेच रहा है और कहीं दूर से भैंस की आवाज आ रही है।)
घसीटा (हंसते हुए, माइक सम्हालते हुए)
“राम-राम भईया! स्वागत है ‘कक्का की चौपाल’ में, जहां मुद्दे सुलझते हैं… या फिर और उलझ जाते हैं! आज हम बैठे हैं रेक्सा कोलमी गांव में, जहां 1320 मेगावाट की बिजली बननी है, लेकिन सवाल ये है कि गांव वाले अभी भी अंधेरे में क्यों हैं? आज इसी पर चौरंगी लाल जी से चर्चा करेंगे। चौरंगी लाल जी, बताइए भैया, मामला क्या है?”
(चौरंगी लाल चश्मा साफ करते हुए, सिर खुजलाते हुए):
“घसीटा जी, मामला ऐसा है जैसे रोटी पर घी – ऊपर से चिकना, अंदर से सूखा! 2012 में सरकार ने 822 एकड़ जमीन ले ली पावर प्लांट के लिए। मुआवजा दिया लेकिन अब गांव वाले कहते हैं – साठ लाख चाहिए, और हर घर का लइका प्लांट में अफसर बने! और जो बचा-कुचा मुआवजा है, वो तो कब से कचहरी के चक्कर काट रहा है!”
(भीड़ में से आवाज आती है: “सही कहा! हमारी जमीन-हमारा हक!”)
(घसीटा खटिया छोड़कर खड़े होते हैं और माइक आगे बढ़ाते हैं। एक बुजुर्ग किसान (काका) मूंछ पर ताव देते हुए नजर आते हैं।)
घसीटा (चुटकी लेते हुए)
“काका जी, आपकी मूंछ देखकर लग रहा है आप बड़े दबंग हैं। जरा बताइए, क्या मामला है?”
काका (गुस्से में, लेकिन थोड़ा हंसते हुए)
“देखो बेटा, पहले कहा गया कि बिजली बनेगी तो गांव रौशन हो जाएगा। लेकिन अब तो हालत ये है कि बत्ती गायब और बिल टाइम पर आ जाता है! नौकरी की बात की थी – हमारे घर का मुन्ना तो फार्म भरते-भरते बूढ़ा हो गया। हम कहते हैं – पहले पैसा दो, फिर प्लांट लगाओ। नहीं तो धरना-प्रदर्शन तो तगड़ा होगा!”
(भीड़ में से एक बुजुर्ग बोलते हैं “और बिठाइए चौपाल, सरकार भी देखे कि गांव वाले कितने समझदार हैं!” सब हंसते हैं।)
(चौरंगी लाल नोट्स पलटते हैं और थोड़ा जोर से बोलते हैं।)
चौरंगी लाल
“देखिए, नुकसान की बात होती है लेकिन फायदा भी है भैया। सड़क बनेगी, स्कूल खुलेगा, अस्पताल बनेगा – और हां, बिजली तो फुल स्पीड में बनेगी। मतलब गांव वालों के फोन अब 24 घंटे चार्ज में रहेंगे!”
(हंसी की आवाज आती है, एक युवक पीछे से बोलता है: “सर, पहले बिजली आए तब ना चार्ज करेंगे!” सब हंस पड़ते हैं।)
(फुंनगा बाजार का दृश्य – चाय की दुकान पर भीड़ लगी है। घसीटा चाय का कप उठाकर माइक पकड़ते हैं।)
घसीटा
“चाय वाले भैया, देखिए चाय तो आपकी जबरदस्त है, लेकिन बताइए पावर प्लांट से आपको क्या फायदा?”
चायवाला (मुस्कराते हुए)
“घसीटा जी, प्लांट चालू होगा तो मजदूरों की लाइन लग जाएगी। सबको चाय चाहिए होती है – मेरा तो धंधा डबल हो जाएगा! लेकिन हां, अगर गांव वाले दुखी रहेंगे तो मजा नहीं आएगा। सरकार को कुछ मसालेदार करना पड़ेगा!”
(दीपक नाम का युवक सामने आता है – सिर पर लाल पट्टी बांधे हुए।)
चौरंगी लाल
“दीपक भाई, आप गांव के उभरते सितारे हैं, क्या उम्मीद है आपकी?”
दीपक (जोश में, लेकिन हंसी में)
“सर, हम चाहते हैं कि प्लांट बने और गांव के सब लड़कों को नौकरी मिले। वैसे भी घर पर मम्मी रोज डांटती है कि कुछ करते क्यों नहीं! अब सरकार मदद करे, ताकि हम मम्मी की डांट से भी बचें और तनख्वाह भी आए।”
(भीड़ में ठहाके लगते हैं, एक बुजुर्ग बोलते हैं: “अच्छा बोले दीपक, अब सरकार सुने!”)
(कैमरा वापस घसीटा की ओर घूमता है। घसीटा खड़े होते हैं, और सीरियस टोन में बोलते हैं। बैकग्राउंड में हल्की हवा बह रही है, और पावर प्लांट के धुएं का सीन दिखाई देता है।)
घसीटा
“तो भाइयों-बहनों, नतीजा ये है कि पावर प्लांट से बिजली तो बनेगी, लेकिन असली रौशनी तब आएगी जब गांव का हर घर खुशहाल होगा। कक्का की चौपाल से हम वादा करते हैं – आपका दर्द, आपकी हंसी – सब सरकार तक पहुंचाएंगे। और याद रखिए…”
चौरंगी लाल (हंसते हुए हाथ जोड़ते हैं)
“1320 मेगावाट की बिजली, लेकिन सवाल भी उतने – और जवाब कौन देगा? सरकार को सोचना पड़ेगा भैया!”
(तालियां और हंसी की आवाजें आती हैं। कैमरा ऊपर उठता है, चौपाल का सुंदर दृश्य दिखता है, और स्क्रीन पर ‘कक्का की चौपाल’ का लोगो चमकता है।)
एंकर (स्टूडियो में मुस्कराते हुए)
“वाह घसीटा और चौरंगी लाल जी, क्या बात कही आपने! आप बने रहिए कक्का की चौपाल पर, जहां हर खबर में मसाला भी है और मुद्दा भी।”



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