
भारत एक विविधताओं से भरा देश है, जहां जातीय और सामाजिक संरचना इतनी गहरी है कि इसे समझना और मापना आसान नहीं है। जातियों और उपजातियों की यह व्यवस्था सदियों पुरानी सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक व्यवस्था पर आधारित है। अब जबकि भारत सरकार ने आगामी जनगणना में सभी धर्मों की जातियों को गिनने का फैसला किया है, इस विषय पर गहन विश्लेषण आवश्यक हो गया है।
भारत में जातियों और उपजातियों का व्यापक स्वरूप
भारत में जातियों की संख्या 10,000 से अधिक मानी जाती है, जिनमें उपजातियाँ भी शामिल हैं। जातियों का विभाजन निम्न प्रमुख श्रेणियों में किया जाता है
सामान्य वर्ग (General/Unreserved)
इसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, कायस्थ जैसी जातियाँ आती हैं। उदाहरण के तौर पर
ब्राह्मण सरयूपारीण, मैथिल, गौड़, कन्नड़ ब्राह्मण।
क्षत्रिय राठौर, सिसोदिया, पंवार, ठाकुर।
वैश्य अग्रवाल, माहेश्वरी, ओसवाल, लोहाना।
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
इसमें 5,000 से अधिक जातियाँ आती हैं।
उत्तर भारत यादव, कुर्मी, गुप्ता, मौर्य, नोनिया।
दक्षिण भारत रेड्डी, वोक्कलिगा, गौड़ा।
पूर्वी भारत तेली, कोयरी।
पश्चिम भारत धानुकर, लोहार।
अनुसूचित जातियाँ (SC)
भारत सरकार की सूची में लगभग 1,200 जातियाँ हैं।
उत्तर भारत चमार, पासी, धोबी, वाल्मीकि।
दक्षिण भारत परयार, चेंगाई, मदिगा।
पूर्वोत्तर मेती, मोइरा।
अनुसूचित जनजातियाँ (ST)
करीब 700 जनजातियाँ दर्ज हैं।
गोंड, संथाल, मीणा, भील, टोडा, अपाटानी आदि।
मुस्लिम समुदाय में जातीय संरचना
मुस्लिम समाज में भी जातियों का मजबूत प्रभाव है। हालांकि इस्लाम में जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं दी गई है, फिर भी भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक ढांचे के तहत जातीय पहचान स्पष्ट है।
अशराफ (श्रेष्ठ जातियाँ) सैयद, शेख, पठान, मुगल।
अजलाफ (सामान्य जातियाँ) अंसारी (जुलाहा), कसाई, नाई, मोमिन।
अरज़ल ( निम्न मानी जाने वाली जातियाँ) मेहतर (भंगी), हलालखोर।
बिहार के जातीय सर्वेक्षण के अनुसार मुस्लिमों में 30 से अधिक जातियाँ सूचीबद्ध की गई हैं। ([Bihar caste survey, 2022])
धर्म परिवर्तन और आरक्षण का मुद्दा
भारत में आरक्षण नीति के अनुसार अनुसूचित जातियों को आरक्षण का लाभ केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म में मिलता है। धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम या ईसाई बनने पर SC आरक्षण समाप्त हो जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में यह देखा गया है कि धर्मांतरण के बाद भी जातीय पहचान बनी रहती है और आरक्षण का लाभ लेने के प्रयास किए जाते हैं, जो विवाद और बहस का विषय रहा है
जातियाँ क्यों नहीं लिखी जातीं? (विशेषकर मुस्लिम समाज में)
ऐतिहासिक कारण 1931 में मुस्लिम लीग ने आग्रह किया था कि मुस्लिम केवल धर्म लिखें, जाति नहीं। इसका प्रभाव आज भी जारी है।
धार्मिक दृष्टिकोण इस्लाम में जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं दी जाती।
सामाजिक दबाव जातीय असमानता को उजागर करने से बचने के लिए भी जाति छुपाई जाती है।लेकिन जातीय आधार पर आरक्षण का लाभ लिया जाता है।
सरकार का नया कदम
भारत सरकार ने तय किया है कि अगली जनगणना में सभी धर्मों और उनकी जातियों की विस्तार से गणना की जाएगी। इससे:
सटीक सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलेगी।
नीति निर्माण और आरक्षण नीति में सुधार होगा।
विभिन्न समुदायों के भीतर व्याप्त असमानता को सामने लाया जा सकेगा।
भारत की जातीय संरचना इतनी विस्तृत और जटिल है कि इसे पूरी तरह से सूचीबद्ध करना एक बड़ा कार्य है। हर राज्य, भाषा, धर्म और क्षेत्र के अनुसार जातियाँ बदलती हैं। सरकार का यह कदम सामाजिक न्याय की दिशा में अहम माना जा रहा है, जिससे भविष्य में आरक्षण नीति और सामाजिक कल्याण योजनाओं में पारदर्शिता आएगी।
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