
मऊगंज (रीवा)। मध्य प्रदेश के मऊगंज जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र के गड़रा गांव में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जिसने प्रदेश की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। इस हत्याकांड में एक युवक और एक सहायक उप निरीक्षक (ASI) की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस मामले में एक तथाकथित पत्रकार, गांव के सरपंच और पूर्व सरपंच की संलिप्तता भी सामने आई है, जिससे पूरे राज्य में आक्रोश फैल गया है।
शनिवार को गड़रा गांव में दबंगों ने सनी द्विवेदी नामक युवक को बंधक बना लिया और उसे पीट-पीटकर मार दिया “आज पुलिस की होली है, अच्छा मौका है।”
जब युवक बंधक था, उसने हमलावरों को चेतावनी दी कि यदि वह बच गया, तो उन्हें सबक सिखाएगा। इस पर आरोपियों ने कहा, “जब यहां से छूटकर जाएगा, तब न बताएगा।” यानी उसकी हत्या की योजना पहले से बनाई जा चुकी थी।
इसकी सूचना मिलते ही शाहपुर थाना प्रभारी संदीप भारती के नेतृत्व में पुलिस टीम मौके पर पहुंची। लेकिन जब पुलिस ने हस्तक्षेप किया, तो भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। इस हमले में एएसआई रामचरण गौतम गंभीर रूप से घायल हो गए और उनकी मौत हो गई। इस दौरान थाना प्रभारी समेत अन्य पुलिसकर्मी और तहसीलदार भी घायल हो गए।

पुलिस जांच में सामने आया कि इस पूरी घटना में पत्रकार मोहम्मद रफीक की साजिश थी। उसके मोबाइल में ऐसे वीडियो मिले हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि वह केवल रिपोर्टिंग नहीं कर रहा था, बल्कि आरोपियों को उकसा भी रहा था। पुलिस ने मोहम्मद रफीक, सरपंच और पूर्व सरपंच को हिरासत में ले लिया है।
सरकार की प्रतिक्रिया और कार्रवाई
घटना के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसे गंभीरता से लिया और मृत एएसआई रामचरण गौतम को “शहीद” का दर्जा देने की घोषणा की।


पुलिस महानिदेशक (DGP) कैलाश मकवाना खुद घटनास्थल पर पहुंचे और सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया। उन्होंने कहा, “यह कार्रवाई अपराधियों के लिए नजीर बनेगी।” अब तक 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है, और शेष की तलाश जारी है।
फिर भड़की हिंसा, पुलिस पर हमला
शनिवार देर रात जब पुलिस ने गड़रा गांव में छापा मारा और दो आरोपियों को हिरासत में लिया, तो ग्रामीणों ने माहौल बिगाड़ने की कोशिश की। आदिवासी समुदाय के कुछ लोगों ने पुलिस पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन बल प्रयोग कर स्थिति को नियंत्रण में लाया गया।
विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन यादव से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की मांग की। कांग्रेस का आरोप है कि प्रदेश में अपराधियों का खौफ खत्म हो चुका है और पुलिस भी असहाय हो गई है।
इस हत्याकांड से उठे गंभीर सवाल
1. पत्रकार की साजिश एक पत्रकार की भूमिका घटना को रिपोर्ट करना होती है, न कि साजिश में शामिल होना। क्या पत्रकारिता के नाम पर अपराध को बढ़ावा दिया जा रहा है?
2. त्योहार के दिन की गई योजना आरोपियों ने जानबूझकर होली के दिन को चुना, क्योंकि अधिकतर पुलिसकर्मी त्योहार में व्यस्त थे। यह दर्शाता है कि हत्या सुनियोजित थी।
3. प्रशासन की विफलता क्या पुलिस पहले से इस इलाके में चल रहे तनाव को नहीं भांप सकी? अगर सुरक्षा कड़ी होती, तो क्या यह घटना रोकी जा सकती थी?
4. क्या यह सांप्रदायिक षड्यंत्र था? इस घटना में आदिवासी समुदाय, दबंग तत्वों और पत्रकार की मिलीभगत सामने आ रही है। क्या इसके पीछे कोई गहरी साजिश थी?
मऊगंज की यह घटना केवल एक हत्या नहीं, बल्कि प्रशासनिक विफलता, पत्रकारिता की गिरती साख और समाज में बढ़ रही अराजकता का प्रतीक है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या सरकार सच में इस मामले में सख्त कदम उठाती है, या फिर यह भी एक राजनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाता है।



Leave a Reply