
“ट्रंप के टैरिफ वार से भारत-अमेरिका व्यापार पर संकट, महंगे होंगे चावल-मसाले से लेकर फार्मा तक!”
भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों पर असर
अमेरिका और भारत के बीच गहरे कारोबारी रिश्ते हैं। अमेरिका, भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वर्ष 2024 में दोनों देशों के बीच कुल $129.2 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें से भारत से अमेरिका को $87.4 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जबकि अमेरिका से भारत को $41.8 अरब डॉलर का निर्यात हुआ।
हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप के पुनः राष्ट्रपति बनने के बाद व्यापार संतुलन को लेकर उनकी आक्रामक नीति सामने आई है। ट्रंप प्रशासन 2 अप्रैल 2025 से भारत पर “रेसीप्रोकल टैरिफ” (पारस्परिक शुल्क) लगाने की घोषणा कर चुका है। यह कदम केवल भारत ही नहीं बल्कि स्वयं अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव डालेगा।
भारत-अमेरिका व्यापार पर टैरिफ का प्रभाव
अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से भारतीय निर्यातकों को झटका लगेगा और अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी महंगाई का सामना करना पड़ेगा। ट्रंप प्रशासन द्वारा आयात शुल्क बढ़ाने से भारतीय उत्पादों की लागत बढ़ेगी, जिससे उनका अमेरिकी बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ कम हो जाएगा।

1. भारतीय निर्यातकों पर दबाव – टैरिफ बढ़ने से अमेरिका में भारतीय उत्पादों की कीमत बढ़ेगी, जिससे उनकी मांग में गिरावट आ सकती है।
2. अमेरिकी उपभोक्ताओं को झटका – भारत से आयात होने वाले उत्पाद महंगे होंगे, जिससे अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है।
3. व्यापार संतुलन पर प्रभाव – भारत का अमेरिका के साथ व्यापार घाटा बढ़ सकता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
4. भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा घटेगी – अमेरिकी बाज़ार में भारतीय ब्रांड्स को उच्च दरों के कारण नुकसान हो सकता है।
महंगे हो सकते हैं ये भारतीय उत्पाद
अमेरिका भारतीय उत्पादों का प्रमुख खरीदार है, विशेष रूप से खाद्य उत्पादों, फार्मास्यूटिकल्स, ऊर्जा संसाधनों और इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है। यदि टैरिफ बढ़ाया गया तो निम्नलिखित उत्पाद महंगे हो सकते हैं:
1. खाद्य सामग्री – मसाले, मखाना, फ्रोजन झींगे, बासमती चावल, काजू, फल, सब्ज़ियां, तेल, प्रोसेस्ड शुगर, स्वीटनर।
2. ऊर्जा व खनिज – पेट्रोलियम, कच्चे हीरे, तरल प्राकृतिक गैस (LNG), सोना, कोयला, धातु अपशिष्ट।
3. औद्योगिक एवं रक्षा उत्पाद – इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, डिफेंस प्रोडक्ट्स, इंजीनियरिंग सामान।
4. फार्मास्यूटिकल्स एवं स्वास्थ्य उत्पाद – भारतीय दवा और चिकित्सा उपकरणों का निर्यात प्रभावित हो सकता है।
विशेष रूप से बासमती चावल, जिसकी अमेरिका में बहुत अधिक मांग है, उस पर अतिरिक्त टैरिफ लगने से कीमतें बढ़ेंगी। इसके अलावा, भारतीय परिधान जैसे साड़ियाँ और कुर्ते भी महंगे हो सकते हैं, जिससे अमेरिकी बाज़ार में इनकी बिक्री प्रभावित होगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

टैरिफ बढ़ने से भारत के कुल निर्यात को झटका लग सकता है। भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिका में व्यवसाय करना महंगा हो जाएगा और वे अमेरिकी उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकती हैं।
1. भारतीय गहनों और वस्त्र उद्योग पर असर – अमेरिकी बाज़ार में भारतीय ज्वेलरी और परिधान उद्योग को नुकसान होगा।
2. आईटी और टेक्नोलॉजी कंपनियों को झटका – अमेरिका में कार्यरत भारतीय टेक कंपनियों को भी अतिरिक्त लागत चुकानी पड़ सकती है।
3. फार्मा उद्योग को झटका – भारतीय दवाओं की कीमतें बढ़ने से उनकी मांग कम हो सकती है, जिससे भारतीय दवा कंपनियों के राजस्व में गिरावट आ सकती है।
4. व्यापार घाटा बढ़ेगा – टैरिफ बढ़ने से भारत का निर्यात प्रभावित होगा, जिससे व्यापार संतुलन और करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) पर दबाव पड़ेगा।
क्या भारत करेगा जवाबी कार्रवाई?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में टैरिफ़ (शुल्क) संरचनाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत, आयातित उत्पादों पर विभिन्न दरों से टैरिफ़ लागू करता है, जो उत्पाद के प्रकार और उसकी संवेदनशीलता पर निर्भर करती हैं। उदाहरण के लिए, भारत ने हाल ही में अमेरिकी बॉर्बन व्हिस्की पर आयात शुल्क को 150% से घटाकर 100% किया है।
इसके अलावा, भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ़ बढ़ाने का भी निर्णय लिया है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ सकता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि टैरिफ़ दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं, जो दोनों देशों की व्यापार नीतियों, वार्ताओं और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं ।

भारत के पास भी विकल्प हैं कि वह अमेरिकी आयातों पर टैरिफ बढ़ाकर जवाब दे। भारत अमेरिका से बड़ी मात्रा में एयरोस्पेस उपकरण, टेक्नोलॉजी, गाड़ियों, एल्कोहलिक बेवरेजेस और कृषि उत्पाद खरीदता है। यदि भारत इन पर टैरिफ बढ़ाता है, तो अमेरिकी कंपनियों को भी बड़ा झटका लग सकता है।
इसके अलावा, भारत यूरोपीय संघ और दक्षिण एशियाई देशों के साथ व्यापार बढ़ाकर अमेरिकी बाज़ार पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है।
ट्रंप प्रशासन द्वारा रेसीप्रोकल टैरिफ लागू करने से भारत और अमेरिका दोनों को नुकसान होगा। भारत के कई उत्पाद अमेरिकी बाज़ार में महंगे हो जाएंगे, जिससे भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता घटेगी और अमेरिकी उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
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