वीर योद्धा टंट्या भील भारतीय रॉबिनहुड
गांव का वह हिस्सा जहां धरती अपनी हरियाली से सजी हुई थी, नदियां कल-कल करती बह रही थीं, और पहाड़ों की गोद में बसे भीलों की बस्ती में एक बालक का जन्म हुआ। यह बालक साधारण नहीं था। उसकी किलकारियों में न सिर्फ एक परिवार का, बल्कि पूरे समाज के उद्धार का आभास था।
15 अक्टूबर 1842, मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के बड़दा गांव में जन्मा यह बालक था टंट्या भील। वह समय जब समाज शोषण, अन्याय और गरीबी से घिरा हुआ था, टंट्या का जन्म एक उम्मीद की किरण लेकर आया। उनके पिता भोल्या भील और माता सेवा बाई एक साधारण भील परिवार से थे। उनका परिवार मेहनतकश और स्वाभिमानी था।
परिवार और बचपन सरल जीवन से वीरत्व तक
टंट्या का परिवार भीलों के पारंपरिक जीवन का प्रतीक था। उनका घर मिट्टी और लकड़ी से बना था, जिसमें हर कोने से प्रकृति की सुगंध आती थी। परिवार खेती-बाड़ी और शिकार करके अपना गुजारा करता था।
मां सेवा बाई टंट्या को साहस और करुणा की कहानियां सुनाती थीं। उन्होंने टंट्या को यह सिखाया,
“जीवन में धन से अधिक मूल्यवान न्याय और स्वाभिमान है।”
पिता भोल्या उन्हें तीर-कमान और तलवार चलाना सिखाते थे। टंट्या बचपन से ही अपने साथी भील बच्चों के साथ जंगल में घूमते, शिकार करते, और गांव वालों की रक्षा करते। यह उनकी प्रारंभिक शिक्षा थी, जिसने उन्हें आगे चलकर न्याय का रक्षक बनाया।
टंट्या का संघर्ष भारतीय रॉबिनहुड का उदय
ब्रिटिश शासन और शोषण का दौर
19वीं सदी में ब्रिटिश शासन और साहूकारों ने गरीब किसानों और आदिवासियों का जीवन दुश्वार कर दिया था। भीलों से उनकी जमीन छीन ली जाती, उन्हें गुलामों की तरह काम कराया जाता, और उनकी मेहनत का फल साहूकार और अधिकारी लूट लेते।
टंट्या ने देखा कि कैसे उनका समुदाय भूख, गरीबी और अन्याय के बोझ तले दबा हुआ था। यह दृश्य उनके भीतर विद्रोह की ज्वाला बन गया। उन्होंने संकल्प लिया कि वे न केवल अपने समुदाय को बचाएंगे, बल्कि पूरे समाज के लिए लड़ेंगे।
अलौकिक प्रेरणा और गूजरा देवी का आशीर्वाद
एक रात, टंट्या ने जंगल में एक रहस्यमयी स्थान पर ध्यान किया। वहां उन्हें गूजरा देवी के दर्शन हुए। देवी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा,
“टंट्या, तुम्हारा जन्म केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के उद्धार के लिए हुआ है। अन्याय और शोषण के खिलाफ तुम्हारी लड़ाई में मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी।”
उस दिन के बाद से टंट्या ने खुद को गरीबों और पीड़ितों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
टंट्या ने अपने साथी भील योद्धाओं का एक समूह बनाया। वे रातों-रात गांवों में जाते, साहूकारों और अंग्रेज अधिकारियों से लूटे गए धन को गरीबों में बांटते। उनका उद्देश्य केवल धन बांटना नहीं था, बल्कि गरीबों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देना था।
एक बार, खंडवा के पास के गांव में साहूकार लालचंद ने पूरे गांव का अनाज जब्त कर लिया। गांव के लोग भूख से मरने की कगार पर थे। टंट्या ने अपने साथियों के साथ रातों-रात साहूकार के गोदाम पर धावा बोला और अनाज को गरीबों में बांट दिया।
गांव वालों ने कहा,
“मामा, आप हमारे लिए भगवान से कम नहीं हैं।”
टंट्या ने मुस्कुराते हुए कहा,
“भगवान तुम्हारे भीतर है। अपने हक के लिए खड़े हो जाओ।”
ब्रिटिश सरकार की आंखों में खटकता नायक
टंट्या के बढ़ते प्रभाव और उनके कारनामों ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया। उन्हें ‘इंडियन रॉबिनहुड’ कहा जाने लगा। ब्रिटिश अफसर उनकी वीरता से भयभीत थे। उनके ऊपर 500 रुपए का इनाम घोषित किया गया, जो उस समय एक बड़ी राशि थी।
टंट्या ने कभी हार नहीं मानी। वह जंगलों और पहाड़ों में अपनी सूझबूझ और रणनीति से अंग्रेजों को बार-बार मात देते रहे।
एक प्रेरक सत्य कथा टंट्या की शक्ति का रहस्य
टंट्या भीलन्याय के प्रतीक।
दुर्गा एक विधवा महिला, जिसकी जमीन साहूकार ने छीन ली।
अंग्रेज अधिकारी विलियम्स टंट्या को पकड़ने की साजिश रचने वाला।
भील योद्धाटंट्या के अनुयायी।
खंडवा के पास के गांव में दुर्गा नाम की एक विधवा रहती थी। साहूकार ने उसकी जमीन छीन ली थी। वह रोती-बिलखती जंगल पहुंची और टंट्या से मदद की गुहार लगाई।
टंट्या ने अपने साथियों से कहा,
“यह सिर्फ दुर्गा की लड़ाई नहीं, यह पूरे समाज की लड़ाई है।”
उन्होंने साहूकार के किले पर हमला किया और दुर्गा को उसकी जमीन वापस दिलाई। इस घटना ने गांव के हर गरीब को यह विश्वास दिलाया कि टंट्या उनके रक्षक हैं।
1889 में अंग्रेजों ने धोखे से टंट्या को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जबलपुर में फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन उनके बलिदान ने पूरे देश को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया।
फांसी से पहले टंट्या ने कहा,
“मेरा शरीर खत्म हो सकता है, लेकिन मेरी आत्मा हर उस व्यक्ति के साथ होगी, जो अन्याय के खिलाफ लड़ेगा।
त्याग और सेवा समाज के लिए जीने वाला व्यक्ति ही सच्चा नायक है।
स्वाभिमानअपने अधिकारों के लिए खड़े होना सबसे बड़ी शक्ति है
अन्याय का विरोध करना हर व्यक्ति का धर्म है
टंट्या भील केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि न्याय और स्वाभिमान का प्रतीक हैं।
जहां भी अन्याय होगा, वहां टंट्या का नाम गूंजेगा।
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Kailash Pandey
Anuppur (M.P.)
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