हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की हार के पीछे कई व्यापक कारण रहे, जो पार्टी की रणनीति, संगठनात्मक कमजोरियों और प्रतिद्वंद्वी दलों की मजबूती को उजागर करते हैं। आइए इन कारणों पर विस्तार से चर्चा करते हैं:
1. जाट मतदाताओं पर अत्यधिक निर्भरता
कांग्रेस ने चुनाव के दौरान मुख्य रूप से जाट समुदाय पर भरोसा किया, जो हरियाणा की कुल जनसंख्या का लगभग 27% है। भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस ने जाट मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की। हालांकि, इस रणनीति के कारण कांग्रेस गैर-जाट मतदाताओं, जैसे दलित और ओबीसी समुदायों, को आकर्षित करने में विफल रही। यह समुदाय खासकर बीजेपी की तरफ खिंच गए, जिसने सभी वर्गों के मतदाताओं पर ध्यान दिया। जाट समुदाय की संख्या महत्वपूर्ण है, लेकिन अकेले इन पर निर्भर रहना कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ(
2. आंतरिक कलह और गुटबाजी
कांग्रेस के भीतर भूपिंदर सिंह हुड्डा और दलित नेता कुमारी सैलजा के बीच स्पष्ट गुटबाजी देखने को मिली। हुड्डा को पार्टी नेतृत्व से समर्थन मिला, लेकिन सैलजा और उनके समर्थक इससे नाराज थे। सैलजा का दलित समुदाय पर गहरा प्रभाव है, लेकिन उन्हें चुनावी टिकट वितरण और अभियान में अनदेखा किया गया, जिससे वे नाराज होकर प्रचार से दूर रहीं। यह आंतरिक विभाजन कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को कमजोर करता रहा, क्योंकि पार्टी एकजुट होकर चुनाव प्रचार नहीं कर पाई(
3. क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों का प्रभाव
कई क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई। उदाहरण के लिए, जजपा और इनेलो ने दलित-आधारित दलों के साथ गठबंधन किया, जिससे कांग्रेस का दलित वोट बैंक बंट गया। यह विभाजन बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में अपना दबदबा बनाए रखा। साथ ही, छोटे दलों और निर्दलीयों ने कांग्रेस के संभावित वोटों में सेंधमारी की, जिससे कांग्रेस को सीटें गंवानी पड़ी(
4. बीजेपी की शहरी प्रभुत्वता
बीजेपी ने शहरी क्षेत्रों, विशेषकर गुड़गांव और फरीदाबाद जैसी सीटों पर अपना वर्चस्व कायम रखा। इन क्षेत्रों में बीजेपी की पकड़ मजबूत रही और कांग्रेस यहां सफल नहीं हो सकी। इसके अलावा, बीजेपी ने ग्रामीण इलाकों में भी जमीनी स्तर पर आरएसएस के नेटवर्क के जरिए मतदाताओं तक पहुंच बनाई। इससे बीजेपी को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बढ़त मिली(
5. चुनावी वादों की कमी
कांग्रेस ने हरियाणा में कई चुनावी वादे किए, जैसे मुफ्त गैस सिलेंडर, मुफ्त बिजली, और कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी। हालांकि, ये वादे मतदाताओं के बीच खास असर नहीं डाल सके। दूसरी ओर, बीजेपी ने विकास योजनाओं पर जोर दिया और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में सकारात्मक छवि बनाई(
6. दलित वोटों का विभाजन
हरियाणा में दलित समुदाय का बड़ा वोट बैंक है, लेकिन कांग्रेस इस समुदाय को एकजुट करने में नाकाम रही। जजपा और इनेलो जैसे दलों ने दलित-आधारित पार्टियों के साथ गठबंधन करके कांग्रेस के दलित वोटों को विभाजित कर दिया। इस विभाजन ने कांग्रेस को भारी नुकसान पहुँचाया, जबकि बीजेपी ने गैर-जाट और दलित मतदाताओं का समर्थन हासिल किया(
कांग्रेस की हार कई कारणों का नतीजा थी, जिसमें जाट मतदाताओं पर अधिक निर्भरता, आंतरिक गुटबाजी, क्षेत्रीय दलों का प्रभाव, और बीजेपी का मजबूत शहरी व ग्रामीण आधार प्रमुख थे। इन सभी कारणों के चलते कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं कर पाई, जबकि बीजेपी ने लगातार तीसरी बार हरियाणा में जीत दर्ज की।
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