माँ कूष्माण्डा देवी दुर्गा के नौ रूपों में से चौथा रूप हैं, जिन्हें नवरात्रि के चौथे दिन पूजा जाता है। संस्कृत में “कूष्माण्ड” जो जीवन की उत्पत्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि माँ कूष्माण्डा ने अपनी मंद मुस्कान से सृष्टि की रचना की थी, जब चारों ओर घना अंधकार था। उन्हें ब्रह्मांड की रचयिता भी कहा जाता है।
माँ कूष्माण्डा की आठ भुजाएं होती हैं, इसलिए उन्हें “अष्टभुजा देवी” भी कहा जाता है। उनकी आठ भुजाओं में कमल, चक्र, गदा, धनुष, बाण, अमृत कलश, जपमाला और कमंडल धारण होता है। माँ का वाहन सिंह है और वे अपने भक्तों को स्वास्थ्य, समृद्धि, दीर्घायु और शक्ति का आशीर्वाद देती हैं।
उनकी पूजा करने से मनोबल और आंतरिक शक्ति का विकास होता है। ऐसा माना जाता है कि उनकी कृपा से व्यक्ति सभी प्रकार की कठिनाइयों से मुक्त हो जाता है और उसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजा विधि
माँ कूष्माण्डा की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री का उपयोग करें:
- सफेद फूल, चंदन, और कुमकुम
- धूप, दीप और नैवेद्य (मालपुआ, नारियल)
- गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध करें
पूजा के चरण:
- माँ कूष्माण्डा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- चंदन, फूल और अक्षत अर्पित करें।
- धूप और दीप जलाकर माँ की आरती करें।
- विशेष मंत्रों का जाप करें और भोग अर्पित करें।
व्रत कथा
एक समय की बात है, एक वन में एक तपस्वी ऋषि आश्रम में निवास करते थे। उनके आश्रम के पास ही एक गाँव था, जहाँ सभी लोग ऋषि के प्रति बहुत श्रद्धा रखते थे। गाँव में एक गरीब ब्राह्मण दंपति रहते थे, जिनके पास धन-सम्पत्ति नहीं थी, लेकिन वे भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी, जिससे वे दोनों बहुत दुखी रहते थे।
एक दिन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ ऋषि के आश्रम में गए और अपनी समस्या बताई। ऋषि ने उन्हें माँ कूष्माण्डा का व्रत और पूजा करने की सलाह दी। ऋषि ने कहा, “माँ कूष्माण्डा अत्यंत करुणामयी हैं। जो भी सच्चे मन से उनकी पूजा करता है, माँ उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।”
ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने ऋषि की सलाह मानकर नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा का व्रत रखा। उन्होंने सच्चे मन से माँ की पूजा-अर्चना की और उनसे संतान प्राप्ति का वरदान माँगा। उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर माँ कूष्माण्डा ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान दिया कि उनके घर शीघ्र ही एक पुत्र होगा।
कुछ समय बाद ब्राह्मण दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उनके घर में खुशियों का वातावरण छा गया और उनके जीवन में समृद्धि आ गई।
इस प्रकार माँ कूष्माण्डा की कृपा से ब्राह्मण दंपति का जीवन सुखमय हो गया। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को करता है, उसे माँ कूष्माण्डा का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है और उसके जीवन की समस्त परेशानियाँ दूर हो जाती हैं।
मंत्र
माँ कूष्माण्डा की आराधना के लिए निम्न मंत्र का जाप करें:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै नमः॥
इस मंत्र का जाप करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
हवन विधि
पूजा के बाद हवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। हवन में निम्न सामग्री का प्रयोग करें:
- आम की लकड़ी, घी, चावल, तिल और गुड़
हवन मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै स्वाहा॥
प्रत्येक आहुति के साथ इस मंत्र का उच्चारण करें और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करें।
आरती
जय कूष्माण्डा माता, मय्या जय कूष्माण्डा माता।
जो कोई तुझको ध्याता, सुख-सम्पत्ति पाता॥
जय कूष्माण्डा माता॥तेरा ही ध्यान लगाता, मां तेरा ही ध्यान लगाता।
मनवांछित फल पाता, दुःख-संकट मिट जाता॥
जय कूष्माण्डा माता॥जिस घर में तुम रहतीं, मां जिस घर में तुम रहतीं।
सभी रोग कष्ट हरतीं, वहां सुख-संपत्ति भरती॥
जय कूष्माण्डा माता॥तू ही है जग की माता, मय्या तू ही है जग की माता।
तू ही है सुखदाती, जीवन की तू भवसागर तरती॥
जय कूष्माण्डा माता॥तेरा व्रत जो नर करता, मां तेरा व्रत जो नर करता।
कभी न वो दुख सहता, मां कभी न वो दुख सहता॥
जय कूष्माण्डा माता॥जो सच्चे मन से ध्याता, मां जो सच्चे मन से ध्याता।
तेरा ही गुण गाता, मां तेरा ही गुण गाता॥
जय कूष्माण्डा माता॥जय कूष्माण्डा माता, मय्या जय कूष्माण्डा माता।
जो कोई तुझको ध्याता, सुख-सम्पत्ति पाता॥
जय कूष्माण्डा माता॥
पूजा और हवन के बाद माँ कूष्माण्डा की आरती करें। आरती के पश्चात प्रसाद का वितरण करें और ग्रहण करें।
माँ कूष्माण्डा की पूजा से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आगमन होता है। उनके व्रत और पूजा से भक्तों को कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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