सरकार 1 व 2 रुपये के सिक्के को अभी चलन से बाहर नहीं किया है, फिर इन सिक्कों को लेने से मना क्यों किया जाता है?क्या ऐसा करके लोग भारतीय मुद्रा का अपमान नहीं कर रहे हैं?ग्रामीण क्षेत्रों में तो इन दोनों सिक्कों का अपमान हो ही रहा है,शहरी क्षेत्रों में जहाँ प्रशासन की नजर रहती है,वहाँ भी इन सिक्कों को लेने से इंकार किया जा रहा है,ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं है,परंतु इसके बाद भी उसके द्वारा मुद्रा का अपमान रोकने की पहल नहीं की जा रही है,शायद प्रशासन यह चाहता है कि इस संबंध में आम जन शिकायत दर्ज कराये,जहाँ तक आम जन का सवाल है,तो 1- 2 रुपये का मामला होने के कारण उक्त सम्बन्ध में आमजनों द्वारा रुचि नहीं दिखाई जाती है,संभवतः उसकी इसी अरुचि के कारण भारतीय मुद्रा के अपमान पर रोक नहीं लग पा रहा है,वैसे शासन प्रशासन की यह निजी जिम्मेदारी है कि वह स्वत: इस तरह की पहल करे,1 एवं 2 रुपये के सिक्के हैं तो बहुत छोटे,लेकिन बाजार में इनकी बड़ी अहमियत है,विनिमय यानि लेनदेन में इनका काफी उपयोग होता है,बड़ी विडंम्बना की बात है कि दुकानदार,व्यापारी व कंपनियां एक दो रुपये के सामान या उत्पाद तो बेंचते हैें,लेकिन उनकी कीमत 1 या 2 के रूप में नहीं लेते हैं,बड़े नोट से एक या दो रुपये काटे जाते हैं,अत्यंत पीड़ा होती है कि समाज के प्रबुद्ध लोग सोसल मीडिया सहित अन्य मंचों पर अनाप शनाप मुद्दे पर बोलते व लिखते रहते हैं,लेकिन समाज व राष्ट्र से जुड़े मुद्दे पर चिंता प्रकट करने को लेकर रुचि नहीं दिखाते हैं,लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ-मीडिया भी राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को लेकर उतना सजग नहीं है,जितना अपेक्षित है,बस सुर्खियां बटोरने वाली खबरों में मीडिया की सबसे ज्यादा रुचि होती है,जो चिंताजनक है,बहरहाल, मीडिया समेत समाज के सभी जिम्मेदारों को चाहिए कि वे मुद्रा के जारी अपमान को रोकने के मामले में शासन प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराये,आशा की जानी चाहिए कि सभी के प्रयासों से एक व दो रुपयों का अपमान प्रभावी तरीके से रुक सकेगा।
हनुमान शरण तिवारी
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