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कक्का की चौपाल न आंखें देख सकीं, न कान सुन सके… लेकिन सेवा शिविर ने फिर भी कह दिया – तुम अकेले नहीं हो!

कक्का की चौपाल न आंखें देख सकीं, न कान सुन सके… लेकिन सेवा शिविर ने फिर भी कह दिया – तुम अकेले नहीं हो!

स्व. भगवत शरण माथुर जयंती पर अमरकंटक में दिव्यांगजनों हेतु नि:शुल्क उपकरण वितरण शिविर
(13 अप्रैल 2025, रेवा धाम, अमरकंटक)
अमरकंटक की भोर, मंदिर की घंटियों के साथ चौपाल पर बैठते हैं ग्रामीण ।

कक्का (धीमे स्वर में, सूर्य की ओर देखते हुए)
“भगवत शरण माथुर… वो नाम नहीं, सेवा का संकल्प था बेटा। उनके जैसे लोग धरती पर समाज को दिशा देने आते हैं।”
दरबारी लाल (कुल्हड़ में चाय लिए आते हुए)
“कक्का! आज भी उनकी याद में कुछ बड़ा हो रहा है अमरकंटक में, सुना है निःशुल्क नेत्र परीक्षण और दिव्यांगजनों को उपकरण बंटेंगे?”
घसीटा (झोला लटकाए हुए)
“हाँ कक्का, सुना तो है… पर ये सरकारी शिविर होते हैं ना… आते हैं, जाते हैं, फोटो खिंचती है, फिर सब भूल जाते हैं!”
कक्का (हाथ उठाकर)

“अरे ना रे! इस बार आयोजन कर रहा है श्री नर्मदे हर सेवा न्यास, और नेतृत्व कर रहे हैं रामलाल रौतेल… MP कोल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष… ये केवल दिखावा नहीं, बल्कि सेवा का सार है बेटा।”
फफूंदी लाल (गंभीर स्वर में)
“मैंने खुद सामाजिक न्याय विभाग के अफसरों से बात की। इस बार दिव्यांगजनों का ऑन स्पॉट परीक्षण होगा, और जिन्हें जरूरत है उन्हें वहीं सहायक उपकरण – जैसे व्हीलचेयर, बैसाखी, श्रवण यंत्र इत्यादि – मिलेंगे।”
फोकट लाल (मुस्कुराते हुए)
“और दवाइयाँ भी मुफ़्त! अरे भई, अब तो मैं भी अपनी पुरानी खांसी दिखा लूंगा।”
पुसऊ राम (चिर-परिचित हाँ में हाँ मिलाते)
“सही बात है जी! जहां मुफ्त हो, वहां भीड़ होगी।”
चौरंगी लाल (राजनीतिक मुद्रा में आते हुए)
“ये सब श्रेय हमारी पार्टी को जाता है! हमने ही तो ये शिविर पास करवाया!”

घसीटा (चुटकी लेते हुए)
“चौरंगी भैया, जब सत्ता बदलेगी तो आप उधर की भी तारीफ करोगे! पर काम जिसने किया है, वो जनता देख रही है।”
एक पोस्टर हाथ में लिए कक्का बोलते हैं, गंभीर भाव से
कक्का
“13 अप्रैल 2025, सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक, रेवा धाम बराती न्यास मुख्यालय, अमरकंटक।
ये केवल एक शिविर नहीं, ये है एक श्रद्धांजलि।
भगवत शरण माथुर की पुण्यस्मृति में सेवा की वह मशाल, जो जरूरतमंदों के जीवन में उजाला लाएगी।”

कक्का (जोशीले स्वर में)
“दिव्यांग भाई-बहनों से कहो –
अपना यूडीआईडी कार्ड, आय प्रमाण पत्र और आधार कार्ड साथ लाएं,
और इस पुण्य अवसर का लाभ लें।
बेटा, सेवा का अवसर बार-बार नहीं आता…”
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Kailash pandey

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One response to “कक्का की चौपाल न आंखें देख सकीं, न कान सुन सके… लेकिन सेवा शिविर ने फिर भी कह दिया – तुम अकेले नहीं हो!”

  1. गोपाल दास बंसल Avatar
    गोपाल दास बंसल

    शिविर का ऐसा समाचार आज तक नहीं पढ़े।
    धन्यवाद जी

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