Globe’s most trusted news site

अमरकंटक संत जीवागिरी महाराज की षोडशी पूजा संपन्न, स्वामी सुदर्शन गिरी बने नए महंत

अमरकंटक संत जीवागिरी महाराज की षोडशी पूजा संपन्न, स्वामी सुदर्शन गिरी बने नए महंत

षोडशी का अर्थ और महत्व


“षोडशी” एक विशिष्ट संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ “सोलहवां” होता है। यह शब्द हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में विभिन्न आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से जुड़ा हुआ है।
षोडशी के विविध अर्थ
मृत्युपरांत सोलहवां संस्कार
किसी व्यक्ति की मृत्यु के सोलहवें दिन आयोजित किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान को “षोडशी” कहा जाता है। यह मृत आत्मा की शांति, मोक्ष और उनकी याद में श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण संस्कार है।
इसमें पूजा, हवन, और सामूहिक भोजन (भंडारा) का आयोजन किया जाता है।
यह आत्मा को सद्गति और परिवार को सांत्वना प्रदान करने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
“षोडशी” भगवान की षोडशोपचार पूजा का भी प्रतीक है। इसमें सोलह प्रकार की विधियों से भगवान की आराधना की जाती है, जैसे
स्नान, वस्त्र, गंध, दीप, पुष्प, नैवेद्य, आदि।
यह पूजा पद्धति भगवान के प्रति भक्त का स्नेह और समर्पण व्यक्त करती है
“षोडशी” देवी त्रिपुरा सुंदरी का एक और नाम है।
यह शक्ति की देवी मानी जाती हैं, जो सोलह वर्ष की चिरयुवा और दिव्य सुंदरता की प्रतीक हैं।
षोडशी देवी तंत्र साधना में सर्वोच्च स्थान रखती हैं।
इन्हें मोक्ष और आध्यात्मिक सिद्धियों की देवी के रूप में पूजा जाता है।
षोडशी संस्कार का महत्व
षोडशी मृत आत्मा को मोक्ष और शांति प्रदान करने का अनुष्ठान है।
यह परिवार के सदस्यों के लिए आत्मिक और मानसिक शांति का माध्यम बनता है।
इस संस्कार में दिवंगत आत्मा को सद्गति की कामना के साथ, ब्रह्मांडीय ऊर्जा में विलीन होने का मार्ग प्रशस्त किया जाता है।
यह जीवन-मरण के चक्र को समझने और धर्म का पालन करने की प्रेरणा देता है।
परिवार और समाज को साथ लाने और दिवंगत के प्रति सम्मान प्रकट करने का अवसर मिलता है।
बड़े पैमाने पर भंडारा और सामूहिक आयोजन, सेवा और परोपकार की भावना को बढ़ावा देना है
प्रयागगिरी आश्रम, अमरकंटक में षोडशी का विशेष आयोजन
अमरकंटक, मां नर्मदा की पवित्र भूमि, धार्मिक परंपराओं का केंद्र है।
ब्रह्मलीन संत जीवागिरी जी महाराज के देहावसान के बाद उनके सम्मान में षोडशी संस्कार आयोजित हुआ।
महंत चयन की प्रक्रिया
नागा संप्रदाय की परंपराओं के अनुसार,
संत समाज ने स्वामी सुदर्शन गिरी को प्रयागगिरी आश्रम का नया महंत नियुक्त किया।
चादर ओढ़ाने की रस्म के साथ यह नियुक्ति विधिवत संपन्न हुई।
स्वामी नर्मदानंद गिरी, स्वामी लवलीन महाराज, और अन्य प्रमुख संतों ने समारोह में भाग लिया।
संत समाज ने नए महंत को आशीर्वाद प्रदान किया।
कार्यक्रम के अंत में हजारों भक्तों और संतों के लिए भंडारे का आयोजन किया गया।
इस आयोजन ने सामाजिक समरसता और धार्मिक सेवा का संदेश दिया।
नागा संप्रदाय और चादर चढ़ाने की परंपरा चादर चढ़ाने का प्रतीकात्मक महत्व
चादर समाधि पर चढ़ाना, संत की शिक्षाओं और साधना को सम्मान देने का तरीका है।
यह प्रक्रिया नए महंत को उत्तराधिकारी के रूप में आधिकारिक मान्यता प्रदान करती है।
नागा संप्रदाय की आध्यात्मिक धरोहर
नागा संप्रदाय में त्याग, तप और साधना की प्राचीन परंपरा का पालन किया जाता है।
चादर, त्याग और साधना का प्रतीक मानी जाती है।
षोडशी देवी तंत्र साधना में स्थान
त्रिपुरा सुंदरी के रूप में षोडशी देवी सोलह कलाओं से पूर्ण हैं।
वे सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
उनकी पूजा तंत्र साधना में अष्टदश महाविद्याओं में प्रमुख स्थान रखती है
षोडशी का अर्थ केवल “सोलहवां” दिन नहीं है, बल्कि यह भारतीय आध्यात्मिकता, परंपरा और संस्कृति की गहराई को व्यक्त करता है। चाहे वह मृत्यु के बाद का संस्कार हो, षोडशोपचार पूजा हो, या त्रिपुरा सुंदरी देवी की आराधना, षोडशी विभिन्न रूपों में धर्म और समाज को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

Tags

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Ad with us

Contact us : admin@000miles.com

Admin

Kailash Pandey
Anuppur
(M.P.)

Categories

error: Content is protected !!
en_USEnglish