
-हाई कोर्ट की टिप्पणी , संभागायुक्त कोर्ट के आदेश पर रोक
जबलपुर । हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश मेें साफ किया कि व्यवहार न्यायालय में दावे के बाद राजस्व न्यायालय को सुनवाई का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने इसी के साथ संभागायुक्त कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।
याचिकाकर्ता भोपाल निवासी अभिषेक निगम की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता व अमरेश कुमार श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से विक्रय पत्र के माध्यम से मौजा गांधेरी, तहसील पनागर, जिला जबलपुर स्थित भूमि खरीदी थी। उसके उपरांत दोनों ने वर्ष 2011 में तहसीलदार के समक्ष बंटवारे का आवेदन प्रस्तुत किया था। तहसीलदार ने बटवारा स्वीकार करते हुए आदेश पारित किए थे। इसके उपरांत राजस्व अभिलेखों में दोनों पक्षों के नाम अलग-अलग दर्ज में हो गए थे। किंतु वर्ष 2018 में अमरेश श्रीवास्तव ने एसडीओ के समक्ष तहसीलदार के आदेश के विरुद्ध अपील प्रस्तुत की थी। साथ ही बाद में एक व्यवहारवाद दायर किया था। जिसके आधार पर एसडीओ के यहां से अपील वापस ले ली गई थी। किंतु एसडीओ के आदेश के विरुद्ध अमरेश श्रीवास्तव ने कमिश्नर के यहां अपील प्रस्तुत की। कमिश्नर ने अपील स्वीकार कर तहसीलदार के आदेश को निरस्त कर दिया। जब एसडीओ ने गुण दोषों पर आदेश पारित नहीं किया है तो उसकी अपील सुनने का अधिकार कमिश्नर को नहीं था। साथ ही साथ व्यवहारवाद दायर होने के बाद राजस्व न्यायालय को कोई अधिकार नहीं था किंतु कमिश्नर ने अमरेश श्रीवास्तव के पक्ष में आदेश पारित कर दिया। साथ ही दिन के अंदर तहसीलदार ने कमिश्नर के आदेश के पालन में रिकार्ड दुरुस्त कर दिया, जो स्पष्ट करता है कि राजस्व अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए आदेश किया है। हाई कोर्ट ने तर्क से सहमत होकर कमिश्नर के आदेश पर रोक लगा दी। साथ ही साथ तहसीलदार द्वारा किए गए अभिलेख संशोधन दुरुस्त करने के आदेश के क्रियान्वयन रोक लगा दी। संपत्ति के विक्रय करने पर भी रोक लगाकर जवाब प्रस्तुत करने की निर्देश दिए। मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को नियत की गई है।
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