ऑनलाइन गेमिंग की लत और उसके दुष्प्रभाव बच्चों के मानसिक, सामाजिक, और आर्थिक जीवन पर गंभीर संकट

ऑनलाइन गेमिंग की लत और उसके दुष्प्रभाव बच्चों के मानसिक, सामाजिक, और आर्थिक जीवन पर गंभीर संकट

रूप से  विकट समस्या  हैं। बच्चों में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां टोलियों में खेलते हुए बच्चे एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं। यह समस्या इतनी गंभीर हो गई है कि बच्चे 10-10 लाख रुपये तक के कर्ज में डूब रहे हैं, चोरी और गैरकानूनी कामों में लिप्त हो रहे हैं। यह एक संगठित धोखाधड़ी का हिस्सा है, जहां गेम में जीत के बहाने उन्हें धीरे-धीरे हार की ओर ले जाया जाता है, और वे बिना समझे कर्ज के जाल में फंस जाते हैं।

ऑनलाइन गेमिंग की लत के प्रकार और इसके प्रभाव:

बैटल रॉयल गेम्स: जैसे PUBG, Free Fire, Call of Duty, Fortnite। ये गेम्स बच्चों को एक वर्चुअल दुनिया में खींचते हैं, जहां वे खुद को सबसे श्रेष्ठ साबित करने के लिए घंटों समय बिताते हैं।

प्रभाव: बच्चे लगातार इन गेम्स में पैसे खर्च करते हैं, जीतने के लिए नए हथियार, स्किन्स, और अन्य वर्चुअल सामान खरीदते हैं। धीरे-धीरे यह एक गंभीर आर्थिक समस्या बन जाती है।

कैसिनो और सट्टेबाजी आधारित गेम्स: इसमें Teen Patti, Poker, और अन्य कसीनो गेम्स शामिल हैं। इन खेलों में सट्टेबाजी के माध्यम से तेजी से पैसे कमाने का लालच दिया जाता है।

प्रभाव: बच्चे और युवा जल्दी पैसे के लालच में सट्टेबाजी की लत का शिकार हो जाते हैं। वे हारते-हारते अपनी सारी जमापूंजी खो देते हैं और कर्ज में डूब जाते हैं।


मल्टीप्लेयर ऑनलाइन गेम्स: जैसे Minecraft, Roblox, जो बच्चों को सामाजिक रूप से जोड़ने का बहाना देते हैं, लेकिन वास्तविकता में ये उनकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं।

बच्चे आभासी दोस्तों के चक्कर में असल जीवन से दूर हो जाते हैं। इसमें भी माइक्रोट्रांजैक्शंस का जाल बिछा होता है, जहां बच्चे वास्तविक पैसों से वर्चुअल सामग्री खरीदते हैं।


भारत  में  नौनिहालों की दशा

बच्चों की संख्या: एक सर्वे के अनुसार, भारत में लगभग 35% बच्चे किसी न किसी ऑनलाइन गेम की लत के शिकार हैं। इनमें से कई बच्चे अपनी पढ़ाई, सामाजिक जीवन, और परिवार से कट चुके हैं। इस लत से ग्रस्त बच्चों में आत्मसम्मान की कमी, निराशा, आक्रामकता, और अवसाद जैसी समस्याएं आम हैं। कई बच्चे चोरी या धोखाधड़ी का सहारा लेते हैं, ताकि गेमिंग के लिए पैसे जुटा सकें।


अभिभावक  चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा

अभिभावक अब यह समझने लगे हैं कि उनके बच्चे ऑनलाइन गेम्स की वजह से पढ़ाई से दूर होते जा रहे हैं। पहले यह माना जाता था कि बच्चों को सुविधाएं देने से वे पढ़ाई पर ध्यान देंगे, लेकिन अब स्थिति विपरीत हो गई है। माता-पिता चिंतित हैं कि उनके बच्चों को गलत दिशा में ले जाया जा रहा है, और वे इसे रोकने में असहाय महसूस कर रहे हैं।

इसके लिए कौन  कौन जिम्मेदार है?

इस समस्या के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं
गेमिंग कंपनियां: बड़ी गेमिंग कंपनियां जैसे Tencent (PUBG), Garena (Free Fire), और Activision (Call of Duty) अत्यधिक लाभ कमा रही हैं। इन कंपनियों का लक्ष्य बच्चों को गेम की ओर आकर्षित करके उनसे अधिक से अधिक पैसे वसूलना है।


विज्ञापन और प्रमोशन: गेमिंग प्लेटफॉर्म्स बच्चों को लगातार विज्ञापनों और प्रस्तावों के जरिए खेल में पैसे खर्च करने के लिए प्रेरित करते हैं।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली: बच्चों में नैतिक और मानसिक शिक्षा का अभाव भी उन्हें इस दिशा में खींचता है। शिक्षा प्रणाली बच्चों को सही तरीके से मार्गदर्शन देने में विफल हो रही है।



देश के किशोरों को बर्बाद करने की साजिश

भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। 2023 में, भारतीय ऑनलाइन गेमिंग बाजार की अनुमानित कीमत ₹15,000 करोड़ से अधिक थी, और यह लगातार बढ़ रहा है।

समाधान और प्रशासनिक कदम
सख्त नियमन: सरकार को गेमिंग कंपनियों के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए। बच्चों के लिए गेमिंग समय सीमित करना, माइक्रोट्रांजैक्शंस पर रोक लगाना, और आयु-आधारित गेमिंग लाइसेंसिंग लागू की जानी चाहिए।
डिजिटल शिक्षा: माता-पिता और बच्चों को डिजिटल सुरक्षा और गेमिंग लत के खतरों के बारे में जागरूक करने के लिए स्कूलों में कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। इसके तहत बच्चों को यह सिखाया जाए कि वे किस तरह से अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं।मनोवैज्ञानिक मदद: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए स्कूलों में नियमित रूप से परामर्श सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए।

सामुदायिक भागीदारी: गांवों और छोटे शहरों में स्थानीय समुदायों को संगठित करके बच्चों को शारीरिक खेलों और अन्य रचनात्मक गतिविधियों में शामिल करने के प्रयास किए जाने चाहिए।



ऑनलाइन गेमिंग की लत एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या बन चुकी है। बच्चों को इस भंवर से बाहर निकालने के लिए अभिभावकों, शिक्षकों और सरकार को मिलकर काम करना होगा। जितनी जल्दी हम इस समस्या की गंभीरता को समझेंगे, उतना ही बेहतर हम अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रख पाएंगे।

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