यदि ईरान-इजराइल युद्ध हुआ, तो पाकिस्तान में शिया विरोधी हिंसा में वृद्धि हो सकती है।

यदि ईरान-इजराइल युद्ध हुआ, तो पाकिस्तान में शिया विरोधी हिंसा में वृद्धि हो सकती है।

पाकिस्तान की भूमिका और उसके आतंकवादी संगठनों का किसी संभावित ईरान-इजराइल युद्ध में शामिल होना एक जटिल और संवेदनशील विषय है। इसे समझने के लिए हमें पाकिस्तान के भीतर सक्रिय आतंकवादी संगठनों, उनके क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संबंधों, और पाकिस्तान की विदेश नीति की समीक्षा

1. पाकिस्तान की विदेश नीति और क्षेत्रीय संतुलन:

पाकिस्तान की विदेश नीति:

पाकिस्तान की विदेश नीति हमेशा से दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर केंद्रित रही है:

इस्लामी दुनिया में अपना प्रभाव: पाकिस्तान खुद को इस्लामी दुनिया का एक प्रमुख देश मानता है। खासतौर से इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में पाकिस्तान की प्रमुख भूमिका है।

सऊदी अरब और खाड़ी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध: पाकिस्तान के सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों से आर्थिक और सैन्य सहयोग के गहरे संबंध हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और विदेशी कामगारों पर निर्भरता इसे सऊदी और खाड़ी देशों के प्रति वफादार बनाती है।


ईरान के साथ पाकिस्तान के संबंध:

हालांकि पाकिस्तान और ईरान दोनों इस्लामी देशों हैं, लेकिन उनके बीच शिया-सुन्नी विभाजन और अन्य क्षेत्रीय हितों के कारण संबंध हमेशा सहज नहीं रहे हैं।

सीमा पर तनाव: पाकिस्तान और ईरान की सीमा पर कई बार तनाव की स्थिति बनी रही है, खासकर बलूचिस्तान में। बलूच विद्रोहियों और आतंकवादी संगठनों के कारण दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास की कमी रही है।

सऊदी अरब-ईरान प्रतिद्वंद्विता: पाकिस्तान के सऊदी अरब के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण, वह सीधे तौर पर ईरान के साथ सैन्य गठजोड़ में शामिल नहीं हो सकता। सऊदी और ईरान की क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में पाकिस्तान का झुकाव सऊदी की तरफ अधिक रहा है।


2. पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन और उनकी विचारधारा:

पाकिस्तान में कई आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं, जिनका इतिहास जिहादी आंदोलनों और क्षेत्रीय संघर्षों से जुड़ा हुआ है। ये संगठन विभिन्न विचारधाराओं पर आधारित हैं और इनके अंतरराष्ट्रीय संपर्क भी व्यापक हैं। कुछ प्रमुख संगठन इस प्रकार हैं:

1. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP):

यह संगठन पाकिस्तान तालिबान के नाम से भी जाना जाता है और इसका उद्देश्य पाकिस्तान सरकार को गिराना और वहां एक इस्लामी राज्य स्थापित करना है। TTP का मुख्यालय अफगानिस्तान के साथ लगने वाले क्षेत्रों में है और यह शरिया कानून की कठोर व्याख्या पर आधारित है।



2. लश्कर-ए-तैयबा (LeT):

यह संगठन भारत के खिलाफ जिहाद का समर्थन करता है और कश्मीर में सक्रिय है। LeT का मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना और नागरिकों पर हमले करना है, लेकिन इसकी अंतरराष्ट्रीय संपर्क भी हैं। LeT को पाकिस्तान में कई आतंकवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।



3. जैश-ए-मोहम्मद (JeM):

JeM भी कश्मीर के मुद्दे पर सक्रिय है और इसका मुख्य उद्देश्य भारत के खिलाफ जिहाद करना है। इस संगठन ने भारत के खिलाफ कई आत्मघाती हमले किए हैं। पाकिस्तान में इसे सरकारी संरक्षण भी मिला है, हालांकि इस पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।



4. हिजबुल मुजाहिदीन (HM):

यह संगठन कश्मीर में भारत के खिलाफ जिहाद के लिए जाना जाता है और इसे पाकिस्तान से व्यापक समर्थन मिला है। यह संगठन कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाता है।



5. अल-कायदा:

अल-कायदा पाकिस्तान में सक्रिय है और वैश्विक जिहाद का समर्थन करता है। हालांकि इसके प्रभाव में कमी आई है, फिर भी यह संगठन पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।




3. ईरान के साथ पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों का संभावित संबंध:

शिया-सुन्नी विभाजन:

ईरान शिया बहुल देश है, जबकि पाकिस्तान एक सुन्नी बहुल देश है। पाकिस्तान में शिया और सुन्नी मतों के बीच तनाव और हिंसा का इतिहास है। पाकिस्तान के कई सुन्नी आतंकवादी संगठन जैसे लश्कर-ए-झांगवी (LeJ) और सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान (SSP) खुले तौर पर शिया समुदाय के खिलाफ हिंसा करते रहे हैं। ये संगठन ईरान के शिया शासन के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं और किसी संभावित ईरान-इजराइल युद्ध में ईरान के खिलाफ ही खड़े हो सकते हैं।

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और अन्य सुन्नी संगठन:

TTP और अन्य सुन्नी जिहादी संगठन भी ईरान के खिलाफ हैं क्योंकि वे शिया इस्लाम को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं। ऐसे में इन संगठनों के ईरान के पक्ष में लड़ने की संभावना कम ही है।

पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति:

पाकिस्तान ईरान और सऊदी अरब दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखने की कोशिश करेगा। हालांकि, पाकिस्तान सीधे तौर पर ईरान के खिलाफ किसी भी बड़े सैन्य संघर्ष में शामिल नहीं होना चाहेगा, क्योंकि इससे उसका क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ सकता है।

4. पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों की स्थिति:

पाकिस्तान में कई आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

1. लश्कर-ए-तैयबा (LeT):

भारत के खिलाफ जिहादी गतिविधियों के लिए जाना जाने वाला यह संगठन पाकिस्तान में कई आतंकी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार है। इसका उद्देश्य भारत में हमले करना और कश्मीर में जिहाद को बढ़ावा देना है।



2. जैश-ए-मोहम्मद (JeM):

कश्मीर मुद्दे पर सक्रिय यह संगठन भी भारत के खिलाफ जिहाद करता है और आत्मघाती हमलों के लिए कुख्यात है।



3. हिजबुल मुजाहिदीन (HM):

कश्मीर में सक्रिय यह संगठन भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त है और पाकिस्तान से इसे समर्थन मिलता रहा है।



4. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP):

यह संगठन पाकिस्तान सरकार के खिलाफ लड़ रहा है और इसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान में इस्लामी राज्य की स्थापना करना है।



5. अल-कायदा:

यह वैश्विक जिहादी संगठन पाकिस्तान में भी सक्रिय है और इसका उद्देश्य पश्चिमी देशों और उनके सहयोगियों के खिलाफ आतंकवादी हमले करना है।



6. सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान (SSP):

यह संगठन शिया विरोधी है और ईरान के खिलाफ भी हिंसक गतिविधियों में शामिल है। SSP के लड़ाके किसी भी संभावित ईरान-इजराइल संघर्ष में ईरान के खिलाफ खड़े हो सकते हैं।




5. पाकिस्तान की भूमिका और भविष्य की चुनौतियाँ:

पाकिस्तान की स्थिति:

पाकिस्तान की सरकार किसी भी बड़े अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में सीधे भाग लेने से बचने की कोशिश करेगी, खासकर ईरान और इजराइल के बीच के युद्ध में। हालांकि, पाकिस्तान में सक्रिय कुछ कट्टरपंथी सुन्नी संगठन ईरान के खिलाफ हो सकते हैं और किसी भी संघर्ष में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं।

भविष्य की चुनौतियाँ:

सांप्रदायिक तनाव: पाकिस्तान में शिया और सुन्नी संगठनों के बीच तनाव बढ़ सकता है।

अंतरराष्ट्रीय दबाव: पाकिस्तान पर अमेरिका और सऊदी अरब का दबाव रहेगा कि वह ईरान के खिलाफ अपना रुख स्पष्ट करे। वहीं चीन और रूस से ईरान के साथ संबंध बनाए रखने का दबाव होगा।


वैश्विक दृष्टिकोण:

ईरान-इजराइल युद्ध का सीधा प्रभाव पाकिस्तान पर नहीं पड़ेगा, लेकिन इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव देश की आंतरिक स्थिरता पर हो सकता है। पाकिस्तान के आतंकी संगठन इस संघर्ष का लाभ उठाकर अपनी गतिविधियों को तेज कर सकते हैं।



पाकिस्तान की भूमिका और उसके आतंकवादी संगठनों का संभावित ईरान-इजराइल युद्ध में शामिल होना जटिल और संभावनाओं से भरा हुआ है। हालांकि पाकिस्तान सीधे तौर पर इस युद्ध में शामिल नहीं होना चाहेगा, लेकिन उसके आतंकी संगठनों का रुख और क्षेत्रीय स्थिति पर इसका प्रभाव गंभीर हो सकता है।

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