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क्‍या आप शारदा की नगरी मैहर जाने की योजना बना रहे हैं? तो पढ़े यह पूरी खबर

क्‍या आप शारदा की नगरी मैहर जाने की योजना बना रहे हैं? तो पढ़े यह पूरी खबर

क्‍या आप मैहर मां शारदा के दर्शन के लिए जाने वाले हैं तो  पढ़ें पूरी जाकारी कैसी  व्यवस्था रहेगी

मैहर।  वहां की पूरी जानकारी। इस बुकलेट में आपके उपयोग की सभी सूचनाएं एकसाथ दी गई हैं। मैहर शारदा के दर्शन-आरती करने, शहर और आसपास के सभी तीर्थस्‍थल घूमने में भी इससे आपको सहायता मिलेगी।

तमसा नदी के तट पर बसा है मैहर
मैहर मध्‍य प्रदेश का एक नवगठित जिला है, जो तमसा नदी के तट पर बसा है। यह जबलपुर से करीब 153 किलोमीटर, सतना से 40 किमी दूर है। मैहर में 600 फीट यानी 5 किमी ऊंचेे त्रिकुटा पर्वत में माता विराजीं हैं। मैहर, सतना, कटनी, रीवा जिलों से घिरा हुआ है।

मां शारदा के दर्शन
सुबह- 5.30 बजे से दोपहर 12.00 बजे तक

फिर- 2.00 से शाम 7.30 बजे तक (नवरात्रों में समय में परिवर्तन संभव)।

मंदिर में दर्शन कैसे होंगे?
परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार से मंदिर तक पहुंचने के लिए वृद्धजनों और दिव्यांगों के लिए व्हीलचेयर की सुविधा उपलब्ध है। आपको 1001 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर में प्रवेश मिलेगा। इसके बाद आप गर्भगृह तक पहुंचेंगे, जहां 3 फीट की दूरी से आप मां शारदा के दर्शन कर सकेंगे।

आरती का समय क्या है?
प्रात:कालीन आरती- सुबह 5.30 बजे

मध्‍यान आरती- दोपहर 12.00 बजे

संध्या आरती- शाम 7.30 बजे (समय में परिवर्तन संभव)

माता में एक घंटे (दोपहर 12:00 से 1:00 बजे तक) विश्राम करेंगी। इस दौरान गर्भगृह के कपाट बंद रहेंगे।

आरती में कैसे शामिल हो सकते हैं?
आरती में शामिल होने के लिए ट्रस्‍ट ने कोई नियम तय नहीं करा है।

वीआइपी दर्शन की क्‍या व्‍यवस्‍था है?
मां शारदा के दर्शन के लिए वीआइपी दर्शन की कोई आधिकारिक व्यवस्था, टिकट या शुल्क नहीं है। सीढि़यों के अलावा रोपवे है जिसका किराया देकर आप सहजता से मां के दरबार में पहुंच सकते हैं।

मंदिर में प्रसाद कहां और क्‍या मिलेगा?
भक्तों को नारियल, चुनरी, इलायची दाने, मिठाई आदि की दुकानें मंदिर परिसर में ही हैं। आपकी जो इच्‍छा है वह लेकर चढ़ा सकते हैं। चढ़ावे के लिए प्रसाद ले जा भी सकते हैं। अगर आप भी शारदीय नवरात्रि में मां शारदा के पावन धाम मैहर की यात्रा पर जा रहे हैं तो मां को चढ़ावे के लिए पान, सुपारी, ध्वजा, नारियल का चढ़ावा लाना न भूलें। मंदिर के प्रधान पुजारी बमबम महराज ने बताया कि मां करुणामयी हैं। मां शारदा भक्तों की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण करती हैं. माई के चरणों में पान, सुपारी, ध्वजा, नारियल का चढ़ावा सब से उत्तम है, माता इससे प्रसन्न होती हैं।

पान का धार्मिक महत्व
पान का जिक्र ‘स्कंद पुराण’ में किया गया है, जिसके अनुसार समुद्र मंथन के समय पान के पत्ते का प्रयोग किया गया था। इसके पत्ते में विभिन्न देवी-देवताओं का वास माना जाता है, इसलिए पूजा में पान के पत्ते का विधि-विधान से प्रयोग किया जाता है।

ध्वज का महत्व
किसी भी देवी देवता को ध्वज चढ़ाने का विशेष महत्व माना जाता है। कहते हैं ध्वज विजय का प्रतीक होता है और भगवान का ध्वज में अंश होता है। इसलिए नवरात्रि में देवी को ध्वज अर्पित करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और बिगड़े काम पूर्ण होते हैं।

मंदिर के अंदर क्‍या ले जा सकते हैं?
मां शारदा के दर्शन के समय आप अंदर केवल प्रसाद ही ले जा सकते हैं। बाकी सामान रखने के लिए दुकानों में सुविधा की गई है।

जानें क्‍यों पड़ा मैहर नाम
सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किये आभूषण जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्ति पीठ अस्तित्व में आ गये। शक्तिपीठों की संख्या विभिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न बतायी गयी है। तंत्रचूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गयी है। देवीभागवत में 108 शक्तिपीठों का उल्लेख है, तो देवीगीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गयी है। परम्परागत रूप से भी देवीभक्तों और सुधीजनों में 51 शक्तिपीठों की विशेष मान्यता है। मैहर शक्तिपीठ श्री माता सतीजी के हार का त्रिकुट पर्वत पर गिर जाने से मैहर (माई का हार) इस जगह का नाम पड़ा जो कालांतर में वह जगह मां शारदा के मन्दिर के रूप में प्रतिष्ठापित हुआ, और त्रिकुट पर्वत का पूरा क्षेत्र मैहर के नाम से प्रसिद्ध हुआ जहां धीरे धीरे मैहर शहर विस्तार किया वह कभी महिष्मति साम्राज्य के अंदर आता था बाद में प्रतिहार, पाल, गोंड, चंदेल, बघेल आदि राजाओं ने भी यहां माता के आशीर्वाद से राज्य किया।

पूर्व में मैहर रियासत की राजधानी थी
चंदेल राजाओं के महान सेनानायक आल्हा ऊदल माताजी के परम् भक्त थे कहते हैं माताजी आल्हा से साक्षात बात करती थी और आल्हा आज भी माताजी की पूजा करने आते हैं जिसके प्रमाण कोविड 19 के दौरान जब लॉकडाउन में मंदिर बंद कर दिया और पुलिस की पहरेदारी थी पर सुबह जब पुजारी जी ने मन्दिर खोला तो आश्चर्य चकित रह गया वहां फल फूल नारियल चुनरी अगरबत्ती प्रसाद सब चढ़ा हुआ था, ऐसी महिमा है माई शारदा जी की वो भक्तों को हमेशा अभय और अमर करती है जैसे आल्हा भगत आज भी मौजूद हैं आदि शहर के पूर्व में मैहर रियासत की राजधानी थी।

यह भी जानें
राज्य 1778 में कुशवाहा शासकों, जो ओरछा के पास राज्य के शासक द्वारा दी गई भूमि पर स्थापित किया गया। राज्य में जल्दी 19 वीं सदी में ब्रिटिश भारत के एक राजसी राज्य बना था और बुंदेलखंड एजेंसी के मध्य भारत एजेंसी में भाग के रूप में दिलाई. 1871 में बुंदेलखंड के पूर्वी राज्यों, मैहर सहित, मध्य भारत में बघेेलखंड की नई एजेंसी फार्म अलग हो गए थे। 1933 मैहर में, दस अन्य राज्यों के साथ साथ पश्चिमी बघेेलखंड में, वापस बुंदेलखंड एजेंसी को हस्तांतरित किया गया। राज्य 407 वर्ग मील के एक क्षेत्र है और 1901 में 63,702 की आबादी थी। राज्य है, जो टोंस नदी से पानी पिलाया था जलोढ़ मिट्टी के बलुआ पत्थर को कवर मुख्य रूप से शामिल है और दक्षिण के पहाड़ी जिले में छोड़कर उपजाऊ है। एक बड़े क्षेत्र में वन के तहत किया गया, जिसमें से एक छोटे से उत्पादन निर्यात व्यापार प्रदान की है। शासक का शीर्षक महाराजा था। राज्य अकाल से 1896-1897 में गंभीर रूप से सामना करना पड़ा. मैहर ईस्ट इंडियन रेलवे (अब पश्चिम मध्य रेलवे) सतना और जबलपुर, 97 मील की दूरी पर जबलपुर के उत्तर के बीच लाइन पर एक स्टेशन बन गया। मंदिरों और अन्य भवनों का व्यापक खंडहर शहर के चारों ओर फैला है।

मैहर के आसपास घूमने वाले क्षेत्र

नीलकंठ मंदिर और आश्रम
मैहर क्षेत्र में स्थित नीलकंठ मंदिर और आश्रम एक खूबसूरत दर्शन स्थल है। मैहर से करीब 16 से 17 किलोमीटर दूर आप यहां पर घूमने जा सकते है। यहां पर भगवान श्री राधे कृष्ण जी के मंदिर में दर्शन करने को मिलता है। नीलकंड महाराज जी ने नीलकंठ आश्रम में तपस्या की थी। बारिश ऋतु में यहां पर झरने भी देखने के लिए मिलता है, जो बहुत ही खूबसूरत नजारा रहता है।

आल्हा -उदल तलैया और अखाड़ा
मैहर त्रिकूट पर्वत के नीचे स्थित एक प्रसिद्ध जगह आल्हा-उदल तलैया के पास मंदिर है जो कि यह जंगल के बीच में स्थित है। यहां पर एक तलैया भी है, जहां पर खूबसूरत कमल के फूल देखने की मिलते हैं। यहां पर पिकनिक मनाने के लिए अच्छा स्पॉट हैं। मां शारदा देवी मंदिर के त्रिकूट पर्वत से आल्हा उदल का अखाड़ा दिखता भी है। मान्यता है कि जब रात्रि में शारदा माता का मंदिर का पट बंद हो जाता है तब सुबह में सबसे पहले वहां पर आज भी दो वीर योद्धा आल्हा एवं उदल अदृष्य होकर मां शारदा की पूजा करने के लिए आते हैं और पंडित के पहले ही मंदिर में पूजा पाठ करके चले जाते हैं। मान्यता है कि आल्हा-उदल ने ही कभी घने पहाड़ वाले इस पर्वत पर मां शारदा के इस पावन धाम की न सिर्फ खोज की, बल्कि 12 वर्षों तक कड़ी तपस्या करके माता से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था।

बड़ी खेरमाई मंदिर
मैहर में घूमने के लिए बड़ी खेरमाई मंदिर भी एक अच्छा मंदिर है और बड़ी खेरमाई मंदिर के बारे में यह भी मान्यता हैं कि यह शारदा माता की बड़ी बहन है और मैहर में शारदा माता के दर्शन करने के बाद इनके दर्शन भी जरूर करनी चाहिए। यहां पर दर्शन करने के लिए विराट भगवानों के मंदिर देखने के लिए मिलते है इसके साथ ही यहां पर एक प्राचीन बावली भी आपको देखने के लिए मिलता है।

सतना रोड में स्थित ओइला मंदिर
यह मन्दिर मैहर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह सतना रोड स्थित ओइला मंदिर दुर्गा जी को समर्पित है। यहां पर दुर्गा जी की बहुत ही भव्य प्रतिमा है और इसके साथ ही यहां पर आपको गणेश जी के दर्शन भी करने के लिए और यहां पर शिवलिंग भी विराजमान है।

बड़ा अखाड़ा मंदिर मैहर
यहां पर एक बहुत बड़ा शिवलिंग है जो कि मंदिर की छत पर बना हुआ है, बड़ा अखाड़ा मैहर के प्रमुख स्थानों में से एक है, इसके साथ ही मंदिर के अंदर 108 शिवलिंग विराजमान है। यहां पर मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य शिवलिंग भी देखने के लिए मिल जाएगा। साथ ही मंदिर में आप यहां आश्रम भी घूम सकते है, जहां पर छात्रों को शिक्षा दी जाति है।

केजीएस मंदिर या इच्छापूर्ति मंदिर
केजेएस फैक्ट्री स्थित दुर्गा जी को समर्पित इस मंदिर में स्फटिक शिवलिंग, गणेश जी और हनुमान जी, लक्ष्मी जी और श्री राम जी के भी दर्शन करने के लिए मिल जाएंगे। इस मंदिर को बहुत ही खूबसूरती से बनाया गया है। इसके साथ ही इस मंदिर में खूबसूरत नक्काशी देखने को मिलती है। चारों तरफ खूबसूरत यह मन्दिर बगीचों से घिरा हुआ है। और रात के समय में मंदिर खूबसूरत लाइटों से जगमगाता रहता है। इसके साथ ही एक खूबसूरत फवारा मंदिर के बाहर देखने के लिए मिल जाएगा।

पन्नीखोह जलप्रपात मैहर
यह जलप्रपात जंगल में स्थित है और यहां पर आप घूमने के लिए वर्षा ऋतु के समय जा सकते हैं। पन्नी जलप्रपात मैहर में स्थित एक अच्छी जगह है। इस जलप्रपात में जाने के लिए आपको पैदल जाना पड़ता है, क्योंकि यहां पर जाने के लिए रोड मार्ग नहीं है।

पन्नीखोह जलप्रपात
वहां से यह जलप्रपात करीब 3 से 4 किलोमीटर दूर पड़ेगा। यहां पर जाकर आपको बहुत अच्छा लगेगा। आप इस जलप्रपात में आल्हा उदल मंदिर से जा सकते हैं।

पाषाण प्रतिमा आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की
यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर ‘नरसिंह पीठ’ के नाम से भी विख्यात है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखण्ड के नायक आल्हा व ऊदल दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है। प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं किंतु वर्ष में दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमें लाखों यात्री मैहर आते हैं। मां शारदा के बगल में प्रतिष्ठापित नरसिंहदेव की पाषाण प्रतिमा आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की बताई जाती है। देवी शारदा का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थल देश के लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र है माता का यह मंदिर धार्मिक तथा ऐतिहासिक है। के जे एस के पास इच्छापूर्ति मंदिर पर्यटकों का दर्शनीय स्थल है।

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